पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उड़ानें
कागज के यानों पर चढ़कर
नील गगन को पाने।
बैशाखी पर टिकी हुई है
जिनकी खुद औकातें
बाँट रहे दोनों हाथों से
भर-भर कर सौगातें
राह दिखाने घर से निकले
अंधे बने सयाने।
मुट्ठी ताने घूम रहे वो
गाँव गली चौबारे,
जिनके घर की बनी हुई हैं
शीशे की दीवारें,
हाथ कटे कारीगर निकले
ऊँचे भवन बनाने।
जिनके घर में नहीं अन्न का
बचा एक भी दाना,
दुनिया भर को भोजन
देने का ले रहे बयाना,
टूटी पतवारों से निकले
नौका पार लगाने।